Last modified on 15 सितम्बर 2011, at 20:34

दीपाली / रेखा चमोली

Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:34, 15 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेखा चमोली |संग्रह= }} <Poem> दीपाली मानो निश्छल हंसी…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दीपाली मानो निश्छल हंसी
मानो बासन्ती हवा चलने पर
लहलहा रहे हों सरसों के खेत
दीपाली चौदह वर्ष की किशोरी है
कक्षा तीन की विद्यार्थी
ये और बात है कि वो
जिस कक्षा में चाहे बैठ सकती है
दीपाली अन्य बच्चों से थोड़ी अलग है
विशेष आवश्यकता वाली बच्ची

सुन्दर मासूम चंचल
मानो सीधी सपाट बहती नदी की
राह में
छोटे-बड़े पत्थरों के आने से
बन-बिगड़ रही हों लहरें
मेरे कंधों तक लम्बी दीपाली
जितनी मुझे प्रिय है
शायद मैं भी उसे उतनी ही

अक्सर मेरे पीछे-पीछे आ जाती है
मैं कक्षा एक में हूं
तो दीपाली
छोटे बच्चों को गोद में बिठा
लाड़ जता रही है
कक्षा पांच में कंकाल समझाते हुए
सबसे पहले दीपाली ही
अपनी हड्डियां छू रही है
हर दस मिनट बाद आकर कहेगी
मैडम जी काम दे दो जी
चालीस बयालिस बच्चों की कक्षा में
उस पर उतना ध्यान नहीं दिया जा सकता
जितना उसे चाहिए
जो बात उसे पसन्द नहीं
कोई उससे नहीं मनवा पाता

नाराज होने पर वो
जमीन पर लेट जाती है
जोर-जोर से रोने लगती है
जिससे नाराज है
उस पर चीजें फेंकती है

एक दिन वो लगातार
नीलम को परेशान कर रही थी
पढ़ाना शुरू करने पर
और ज्यादा शैतानी करती
गुस्से में मैंने उसे
बाहर जाने को कहा
वो बाहर से लौटी एक मोटा डण्डा लिए
बचाते बचाते भी
नीलम की पीठ और मेरे हाथ पर
एक वार कर ही दिया
बड़ी मुश्किल से
अपनी उत्तेजना और पीड़ा को काबू कर
उसकी नाराजगी का कारण पूछा
नीलम ने मेरा हुक ले लिया जी
क्या?
गुस्से में उसका जल्दी-जल्दी बोलना
समझ न आया
अन्य बच्चों से पूछने पर पता चला
नीलम ने अपना पुराना बैग दिया था
दिपाली को
आज नीलम ने उससे हुक निकाल दिया
दुबारा हुक लगाने पर मान गई दिपाली

एक बार स्कूल का गेट बन्द होने पर
बाहर जाने की कोशिश में
दीपाली ने अपना सिर
सरियों में फंसा दिया
बच्चों के बताने पर
हम सब भागे
बड़ी मुश्किल से उसका सिर निकाला

ये दिपाली ना
एक दिन कोई मुसीबत खड़ी करेगी
बड़ी मैडम गुस्से में थीं
ये पहले भी एक-दो बार
ऐसा कर चुकी है
भोजन माता ने बताया
इसके मां-बाप अब इसे
घर पर क्यों नहीं रखते?
वो तो रखना चाहते हैं
ये खुद ही भागकर आ जाती है
आएगी क्यों नहीं?
बिस्किट भात खाती है
बच्चों को मारती है
घर पर यह सब कहां होगा?
बाद में उसे समझाया
दीपाली बाहर जाना हो तो
गेट खोल कर जाना
जी मैडम जी, उसने हामी भरी

एक बार बगल के मकान से
दीपाली के चीखने की आवाजें सुन
हम डरे दौड़ कर गए
पता नहीं कब दीपाली
नजरें बचा वहां चली गई थी
कई आवाजों के बाद
गृह मालिक बाहर आए
दीपाली है यहां?
हमने उसके चीखने की आवाजें सुनीं
हां है तो
मैं कब से भगा रहा हू
जा ही नहीं रही
दीपाली! मैं अन्दर जाकर उसे ले आई

स्कूल आकर देखा
उसके गालों पर दांतों के निशान थे
ये किसने काटा
बुड्ढे ने काटा जी
क्यों गई थी वहां?
अब से किसी के घर मत जाना
हम चारों अध्यापिकाएं
स्तब्ध
मानो किसी की मौत हो गई हो
दीदी चलो! अभी बुड्ढे की
खबर लेते हैं
क्या फायदा?
वो अकड़ जाएगा
पहले भी तो.....
गुस्से में कहीं उसे
ज्यादा नुकसान न पहुंचाए
हमें ही थोड़ी सावधानी रखनी होगी

अभी कल ही बच्चे बता रहे थे
मैडम, दीपाली छुट्टी के बाद
सड़क पर जा
कांवड़ियों से पैसे मांगती है
कल इसके पास तेईस रूपए हुए थे

कितना भी समझाओ
दीपाली करेगी वो ही
जो उसका मन करे
वो तितलियों, फूलों, कुत्तों, बिल्लियों से
बातें करती है
बादलों, नदी के संग दौड़ती है
हवा की गुनगुनाहट पहचानती है
जैसे-जैसे उसके शरीर के परिवर्तन
बढ़ रहे हैं
हमारी चिन्ता बढ़ रही है
लेकिन शायद दीपाली ने खुद को
तैयार कर रखा है
हर परिस्थिति के लिए
इसीलिए तो वो रुकती नहीं है
बढ़ती जाती है
वो खूब बढ़े हर कठिनाई लांघे
हम सब भी तो यही चाहते हैं।