Last modified on 16 सितम्बर 2011, at 10:50

बरसो जल / नंदकिशोर आचार्य

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:50, 16 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=बारिश में खंडहर / नंदकि…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


बाँहें फैलाये
देवदार जंगल के सीने में
खुला गहरा ताल
तैरती है हँसिनी-सी द्वीपिका

बरसो, और बरसो जल
ताल को भरा कर दो
द्वीपिका को हरा

उगे थोड़ी घास
कोई गाछ
कुछ फूल-फल।

बरसो, प्यार के जल !

(1980)