सूज गये हैं पाँव
थकन से टूट रहा है पोर-पोर
धौंकनी-से हाँफते हैं प्राण।
किन्तु हाँफती दो साँसों
और घिसटते दो पाँवों के बीच
गूँजती है आत्मा की विकलता
बहती नदी-सी .......
डूब कर नहाता हूँ थका-हारा
फिर से तरोताज़ा,
नया होता हूँ।
लो, वहीं पर बन गया है तीर्थ !
(1981)