Last modified on 16 सितम्बर 2011, at 21:00

बाजार / रेखा चमोली

Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:00, 16 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेखा चमोली |संग्रह= }} <Poem> 1 अब दिल की अर्थव्यवस्था…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

1
अब दिल की अर्थव्यवस्था में क्या हिस्सेदारी ?
फिर भी अधिकांश गिरवी पडे हैं
अनेकों अन्य वस्तुआंे के साथ
 
विचार और संवेदनायें जाने कहॉ जिवाश्म बनी पड़ी हैं
जिन पर करोडों वर्ष बाद कोई
मालिकाना हक जता
रातों रात बन जाएगा अरबपति
 
इन जिवाशमों के छोटे-छोटे टुकडों के लाकेट पहन
कई बुद्विजीवी हो जाएगे मंचासीन ।

2
जितनी तेजी से बढ़ रही हैं सीढीयॉ
उतनी ही तेजी से
गुम हो रही हैं पगडंडियॉ

दूर से ही दिमाग को नियंत्रित
कर रहे उपकरणों में खराबी आ गयी है
जिसे ठीक करने को ढूंढे जा रहे हैं इंजीनियर


धार्मिक स्थलों की भव्यता के साथ ही
बढ़ती जा रही हैं
भिखमंगों की कतारें ।