Last modified on 17 सितम्बर 2011, at 14:52

महानगरीय सड़क / रजनी अनुरागी

Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:52, 17 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रजनी अनुरागी |संग्रह= बिना किसी भूमिका के }} <Poem> स…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


साँझ होते ही जब पसर जाता है अंधेरा
भय की आगोश में खो जाती हैं सड़कें
तो ऐसे में खूँखार चमचमाती आँखें
लपलपाती जीभें
और नोचने को आतुर पंजे लिए
घूमते हैं गिद्ध सड़कों पर।

और ऐसी सड़कों से
भयंकर डैने फैलाए
कोई गिद्ध जब ले उड़ते हैं किसी लड़की को
तो उसके बाद कोई लड़की
लड़की नहीं रहती
सड़क हो जाती है
सपाट, स्याह और बेजान ।