Last modified on 18 सितम्बर 2011, at 06:01

सुख / अतुल कनक

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:01, 18 सितम्बर 2011 का अवतरण

बारणां में खिल्याया छै
घणकरा गुलाब/ राता- धौळा- पैळा
एक एक डाळ पे तीन तीन
कोय पे तो ईं सूँ भी बद’र.......

म्हूँ खाद पटकूँ छूँ क्यारी में
हाथाँ में खुरपी ले’र
खुरपूँ छूँ माटी
अर गाबा पे लागी माटी झटकारबा सूँ प्हैली
चूळू भर सौरम को
पी लूँ छूँ बसंत।

राजस्थानी कविता का हिंदी अनुवाद

आँगन में ही खिल आये हैं
कई गुलाब/ लाल- सफेद- पीले
एक एक डाल पे तीन-तीन
किसी किसी पे तो इससे भी अधिक....
मैं खाद डालता हूँ क्यारी में
हाथों में खुरपी ले कर
मिट्टी को करता हूँ सही
और कपड़ों पर लगी मिट्टी को झटकारने से पहले
ओक में भर कर खुशबू
पी लेता हूँ बसंत।

अनुवाद : स्वयं कवि