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शेष / मधु शर्मा

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प्रेम ने तबाह किया

तबाही में बची रहीं

प्रेम की स्मृतियाँ


नींद झरती रही

अंधकार से

जहाँ सोना नहीं था जाग कर

भीतर बसते रहे तलछट

थे पानियों की तह में


सिर्फ़ पानी ही बचा

हर तबाही में

प्रेम के साथ ।