Last modified on 30 सितम्बर 2011, at 22:46

कल्पवृक्ष / मुत्तुलक्ष्मी

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:46, 30 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुत्तुलक्ष्मी }}{{KKAnthologyDeshBkthi}} {{KKCatKavita‎}}<poem>काल की धुरी प…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

काल की धुरी पर
दिन पलट कर अगला दिन बने
इस अंतराल में
डूबते कॊ उचकाकर दिखाते
सपने में लंबायमान समुद्र तट

पद चिह्नो को मिटा मिटाकर
उकेरती हैं लहरे कहानियाँ
जिन पर नियति के चलते
वेदना से फेंके कंकड़ ज्यो
लौट आ रही हैं इच्छाएं
लहरों के तुमुल नाद के ऎसॆ सपनॆ


'पर्ण हरित' पकाते पकाते पत्ते
पीलॆ पड़ गए तब भी
'असंभव कुछ नही' की धुन मॆ
जुझ रहॆ हैं युद्ध स्तर पर
उधर इसकी भरपाई कर रहॆ
उदार वर्धमान वृक्ष के सपनॆ

निज मूल प्रकृति कॊ बिसरा दुश्मन
और उलझन की गांठ का पहला सिरा
प्रकट हॊगॆ किसी दिन कॆ सपनॆ मॆ
उसॆ साकार करनॆ की
जादू की छड़ी की खॊज
हॊ सकती हैं अगले सपनॆ की शुरूआत

अनुवाद- डॉ. एच. बालसुब्रहमण्यम‌