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धुन लगे दिन / मुत्तुलक्ष्मी

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दर्रा सा बन गया हैं
आधी राह सॆ लौटने का
हर दफा |

हॊता हैं भूलॊ का सामना
और टुकड़ों मॆ मिली
कामयाबी कॆ साथ
वापस भॆजॆ गए
अंतहीन
जीवन के लेखे |


बारंबार के आवागमन के बावजूद
खड्डॊ और टीलों की
वाकफियत काम नहीं आती
आड़े खड़े हैं रोड़े बनकर
मदद के लिए ले गए साधन |

कांच की दीवार पर
शोर भरी दस्तक के साथ
राह की खोज
गांठ खोलते खोलते
बढते जाते हैं रहस्य
महीनो और संवत्सरों को
बेरहमी से
सोख रहे दिनों में शांति
तूफान के केंद्र की मानिंद

अनुवाद डॉ. एच. बालसुब्रहमण्यम‌