Last modified on 7 अक्टूबर 2011, at 04:39

मेला / निशान्त

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:39, 7 अक्टूबर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशान्त |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem>मेले में आई हैं साधा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेले में आई हैं
साधारण सी औरतें-लड़कियां
जिन्हें काम होता है ज्यादा
और सजने-संवरने को
वक्त और साधन कम
वे तो बहुत कम हैं
जिनके लिए हर दिन
मेले का दिन होता है
हाँ! उनके घरों से
लड़के जरुर पहुँचे हैं
मारने के लिए
कुहनियाँ- कंधे!