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बंजारे दिन / मधुप मोहता

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बंजारे दिन घूम रहे हैं,
गांव-गांव कुछ ढूंढ़ रहे हैं।
तुम्हें याद है ? तुमने, मैंने,
ले-देकर इस दौड़-भाग में
क्या पाया है, क्या खोया है ?

घूम-घूमकर सांझ सकारे, थककर हारे,
बंजारे दिन, क्या ढूंढ़ रहे हैं ?
पर्वत-पर्वत नदी किनारे,
लिए हाथ में हाथ तुम्हारा, तुम्हें याद है ?
तेरी याद में, मेरा दिल कितना रोया है ?

सुलग-सुलगकर, जलते, बुझते
दिन बेचारे, धुआं-धुआं से ऊंघ रहे हैं।

बंजारे दिन घूम रहे हैं।