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समय (8) / मधुप मोहता

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समय मेरे बचपन का सखा है।
समय ने मेरे साथ बीनी है इमलियां,
तोड़े हैं जामुन, आम, अमरूद और लीचियां।
देर-सवेर, खट्टे-मीठे बेर,
फालसे, बेल।
समय ने मेरे साथ पकड़ी थी तितलियां,
लट्टू चलाए थे।
समय सरकंडे की पहली कलम है, दवात है, स्याही है,
समय ने दोस्ती की हर रस्म निबाही है।
समय ने मेरे साथ सीखा था खड़िया-पट्टी
पर सात का पहाड़ा,
पढ़ा था गायत्री मंत्र और हनुमान चालीसा
गाई थी आरती।
समय मेरे साथ, आधी रात तक सुनता था विविध भारती।
समय ने पकड़ मेरा हाथ, मेरे साथ,
हर की पौड़ी में गोता लगाया था।
छूट गया पीछे,
नाना का कस्बा, दादा का गांव।
समय को छोड़ हर मित्र पराया था।
समय मेरे यौवन का सहचर था,
हम साथ-साथ झूमे हैं गीतों,
गज़लों, कव्वालियों पर।
समय मेरे साथ थिरका है कितनी धुनों पर।
समय ने सुनाई थीं कितनी कहानियां,
किस्से, ऩज्में, रूबाइयां।
समय मेरा सबसे प्यारा साकी था
दिल्ली में, लखनऊ में, समय
मेरा सबसे प्रिय सहपाठी था।

पृथ्वी की निरंतर परिक्रमाओं में,
जल में, थल पर, आकाष में
समय मेरा सहचर रहा है।
कितने उत्सवों में, गलबहियां
डाले समय मेरे साथ,
उन्मुक्त हंसा है, नाचा है,
लड़खड़ाया है।
समय ने सिखलाया था
प्रणय, निवेदन, साहचर्य
चुंबन, आलिंगन, रति,
भोग, संभोग।

हिमालय के कितने निर्जन एकांतों में
समय ने मेरी कलम थामे लिखाई हैं
ऋचाएं, कविताएं, श्लोक।
स्वंय से, समाज से, संसार से
कितनी संधियों पर समझौतों पर,
समय मेरा हस्ताक्षर रहा है।
समय मेरा स्वजन है। स्वगत है। स्वाध्याय है। सुधि है।
समय आस्था है, विश्वास है, भक्ति है, शांति है,
समय आसक्ति है, विरक्ति है, समय मेरी शक्ति है।
समय सापेक्ष हो सकता है, मेरी समष्टि है।

समय मेरी ‘गीता’ है,
मैं समय की आत्मकथा हूं।
भूमिका, कथ्य, उपसंहार।
सुनो, नेपथ्य में गूंजते समवेत स्वर।
संभवतः समय मेरा गीत गाएगा।
मैं कैसे मान लूं,
तुमने समय का आविष्कार किया है।
तुमने, समय का संक्षिप्त इतिहास लिखा है ?