इस प्रेम की अविरल धारा में , सांसों का क्रम बढ जाता है जब बात जुबा पर आती है , दिल में सैलाब सा आता है जब कहने को कुछ करता मन, होंठों पर के शब्द खो जाते है इस बंद जुबा के अनकहे लफ्ज , बिन सुने ही समझे जाते है शब्दों का अथाह सागर हृदय में है ,बोलने को भी मन करता है| पर ये जुबा बंद हो जाती है , जब प्रेम अधिक हो जाता है जब प्रेम अधिक हो जाता है , सांसो में कोई घुल जाता है तब हृदय का निश्छल प्रेम , बरबस ही आखों से बह जाता है