Last modified on 18 अक्टूबर 2011, at 12:53

सुबह / संतोष अलेक्स

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:53, 18 अक्टूबर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष अलेक्स |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सुबह ने आकर
मेरा चुम्बन लिया

फिर
मैं उठकर बरामदे में पहुँचा
और आरामकुर्सी में बैठ कर
बीती रात को रचे षड्यंत्रों को याद करने की कोशिश करता रहा

इस बीच गाय रंभाई
और सारे षड्यंत्र उसमें विलीन हो गए
जिन्हें फिर याद नहीं कर पाया