Last modified on 11 सितम्बर 2007, at 15:25

पूंजी / अरुण कमल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:25, 11 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुण कमल |संग्रह=पुतली में संसार }} न पहाड़ों के गीत थे ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

न पहाड़ों के गीत थे मेरे पास

न घाटियों दर्रों के

न सागर नदियों के गीत थे

न नाविक मछुआरों के,

मैं तो मैदानों खेतों का रहनवार

थोड़े से बोल थे बग़ीचे बघारों के ।