Last modified on 11 सितम्बर 2007, at 15:30

आत्मकथा / अरुण कमल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:30, 11 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुण कमल |संग्रह=पुतली में संसार }} न लेखक गृह का एकान्त...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

न लेखक गृह का एकान्त

न अनुदान वृत्ति का अभ्यास

जितनी देर में सिंझेगा भात

बस उतना ही है अवकाश ।


चलते चलते डालनी चप्पल

गिरते हँफ़ते उठाना राग,

ख़ड़े मंच पर पात्र तैय्यार

शेष अभी लिखना सम्वाद ।


कैसे सिल पर घिसूँ जायफ़ल

तेल ठोप भर, ज़्यादा गाद ।