सोसती सिरी सर्ब उपमा जोग बाबू रामदास को
लिखा गनेसदास का राम राम बाँचना। छोटे बड़े को सलाम
असिरबाद जथा उचित पहुँचे। आगे
यहाँ कुसल है, तुम्हारी कुसल काली जी से
रात दिन मनाती हूँ।
वह जो अमोला तुमने धरा था द्वार पर,
अब बड़ा हो गया है। खूब घनी
छाया है। मौरों की बहार है। सुकाल
ऐसा ही रहा तो फल अच्छे आएँगे।
और वह बछिया कोराती है। यहाँ
जो तुम होते। देखो कब ब्याती
है। रज्जो कहती है बछड़ा ही वह
ब्याएगी, मेरा कहना है बछिया ही वह
ब्याएगी; देखो क्या होता है। पाँच
पाँच रुपए की बाजी है। देखें कौन
जीतता है।
मन्नू बाबा की भैंस ब्याई है। कोई
दस दिन हुए। इनरी भिजवाते हैं।
तुम को समझते हैं यहीं हो। हलचाल
पुछवाते रहते हैं।
तुम्हें गाँव की क्या कभी याद नहीं आती है
आती तो आ जाते
मुझको विश्वास है।
थोड़ा लिखा समझना बहुत,
समझदार के लिए इशारा ही काफी है
ज्यादा शुभ।
रचनाकाल : जनवरी, 1957, ’कवि’ में प्रकाशित