Last modified on 25 अक्टूबर 2011, at 00:36

सभी रिश्तों से औ’ दीवारो दर से दूर रखता है / अशोक अंजुम

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:36, 25 अक्टूबर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक अंजुम |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <Poem> सभी र...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सभी रिश्तों से औ’ दीवारोदर से दूर रखता है,
ये चक्कर पेट का कितनों को घर से दूर रखता है।

अगरचे बोले हम तो सारी जक़डन टूट जाएगी,
वो हमको इसलिए ही इस हुनर से दूर रखता है।

कि मेरे सर पे है मां की दुआओं का घना साया,
यही अहसास मुझको हर इक डर से दूर रखता है।

वहां कुछ मजहबी लोगों के फतवों की दुकानें हैं,
वो अपने नौनिहालों को उधर से दूर रखता है।

ये मेरी परवरिश का ही कोई जिंदा करिश्मा है,
जो मुझको तल्ख मौसम के असर से दूर रखता है।

कहीं ऐसा न हो, वैसा न हो, जो सोचते रहते
ये उनका खौफ उनको हर सफर से दूर रखता है।