Last modified on 25 अक्टूबर 2011, at 11:41

समुद्र / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:41, 25 अक्टूबर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विश्वनाथप्रसाद तिवारी |संग्रह=बे...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मन की तरह गहरा
इच्छाओं-सा लहराता
आशाओं-सा चमकता
विवशताओं-सा लौटता

आरोह-अवरोह
उद्वेलन- आवर्त
कशमकश कभी तेज़ कभी मंद

अथाह, अछोर, अनन्त
अपने ही भार से थरथराता
चट्टानों पर फन पटकता, हाँफता
फुफकारता, दहाड़ता

समेट लेत है अपने को
अभिशप्त
अकेला
जैसे आदमी ।