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कोयलिया सुनिकै तोरि पुकार री / रमई काका

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सुनिकै तोरि गोहार कोयलिया,
सुनिकै तोरि पुकार री……!

बनके पात पुरान झरे सब, आई बसन्त बहार,
मोरी आँखिन ते अँसुवन कै, होति अजहुँ पतझार।
कोयलिया सुनिकै तोरि पुकार री॥

डारैं सजीं बौर झौंरन ते, भौंर करैं गुँजार,
मोर पिया परदेस बसत हैं, कापर करौं सिंगार।
कोयलिया सुनिकै तोरि पुकार री॥

भरौं माँग मा सेंदुर कइसे, बिन्दी धरौं सँवारि,
अरी सेंधउरा मा तौ जानौ, धधकै चटक अँगार।
कोयलिया सुनिकै तोरि पुकार री॥

चुनरी दिखे बँबूका लागै, राख्यों सिरिजि पेटार,
कूकनि तोरि फूँक जादू कै, दहकै गहन हमार।
कोयलिया सुनिकै तोरि पुकार री॥

अरी जहरुई तोरे बोले, बिस कै बही बयारि,
अब न कूकु त्वै, देखु तनिकुतौ, ढाँखन फरे अँगार।
कोयलिया सुनिकै तोरि पुकार री॥

हउकनि मोरि कंठ मा भरिले, ले टेसुन का हार,
कूकि दिहे पहिराय गरे मा, अइहैं कंत हमार।
कोयलिया सुनिकै तोरि पुकार री॥