Shmishra(चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:41, 9 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनीता अग्रवाल |संग्रह= }} <poem> दाना ले...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
दाना लेकर दीवार पर
चढ़ती हुई चोटीं
गिर जाती है
और कुचली जाती है
दाना
पांच से चिपककर
दूर जा गिरता है
एक दूसरी चींटी आकर
अहसास कराती है,
अपने होने का
जो साथी चींटी को ले जाती है
बिना किसी गिला-शिकवा के
और
मैं देखती रह जाती हूं
मुश्किल से उठाकर
लाये उस दाने को