कैलाश गौतम कोई दुधमुहें कवि नहीं हैं कि उनका परिचय देना जरूरी हो| लेकिन जो कवि फन और फैशन से बाहर खड़ा हो उससे लोग परिचित होना भी जरुरी नहीं समझते| क्योंकि अक्सर लोगों का ध्यान तो सौंदर्यशास्त्र की बनी बनायी श्रेणियाँ खींचती हैं |कैलाश गौतम उस खांचे में नहीं अटते| वह खांचा उनके काम का नहीं है या वे उस खांचे के काम के नहीं| इसका सीधा मतलब है कि यह कवि अपनी कविताओं के लिये एक अलग और और विशिष्ट सौंदर्यशास्त्र की मांग करता है|
वरिष्ठ कथाकार प्रोफेसर दूधनाथ सिंह