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भूमिका / बिना कान का आदमी / कैलाश गौतम

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कैलाश के इन दोहों में जड़ प्रकृति नहीं सर्जित प्रकृति है, जो मानवीय अनुभव के बिभावन का परिणाम है, इसलिए इन दोहों में विभावन मात्र भाषा से नहीं उस स्मृति से भी होता है, जिसके संचरण से रस दसा प्राप्त होती है| ये दोहे जिस आदिमता की निर्मिति करते हैं, वहीं से कल्पना, मेधा, मति प्रज्ञा आदि सबका विकास हुआ है अतः वह नाभिक ही संवेदन और संकेतन का केन्द्र है।

प्रोफेसर सत्यप्रकाश मिश्र [दोहा संग्रह बिना कान का आदमी की भूमिका से ]