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राही मनवा दुख की चिंता क्यूँ सताती है / मजरूह सुल्तानपुरी

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दुख हो या सुख
जब सदा संग रहे न कोई
फिर दुख को अपनाइये
कि जाए तो दुख न होये

(राही मनवा दुख की चिंता क्यों सताती है
दुख तो अपना साथी है ) \- (२)
सुख है एक छाँव ढलती आती है जाती है
दुख तो अपना साथी है
राही मनवा दुख की चिंता क्यों सताती है
दुख तो अपना साथी है

दूर है मंज़िल दूर सही
प्यार हमारा क्या कम है
पग में काँटे लाख सही
पर ये सहारा क्या कम है
हमराह तेरे कोई अपना तो है (२)
ओ..., सुख है एक छाँव ...

दुख हो कोई तब जब जलते हैं
पथ के दीप निगाहों में
इतनी बड़ी इस दुनिया की
लम्बी अकेली राहों में
हमराह तेरे कोई अपना तो है (२)
ओ..., सुख है एक छाँव ...
दुख तो अपना साथी है (२)