Last modified on 22 नवम्बर 2011, at 16:21

हमें तुम से प्यार कितना, ये हम नहीं जानते / मजरूह सुल्तानपुरी

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:21, 22 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मजरूह सुल्तानपुरी }} {{KKCatGeet}} <poem> हमें ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हमें तुम से प्यार कितना, ये हम नहीं जानते
मगर जी नहीं सकते तुम्हारे बिना
हमें तुम से प्यार ...

सुना गम जुदाई का, उठाते हैं लोग
जाने ज़िंदगी कैसे, बिताते हैं लोग
दिन भी यहाँ तो लगे, बरस के समान
हमें इंतज़ार कितना, ये हम नहीं जानते
मगर जी नहीं सकते तुम्हारे बिना
हमें तुम से प्यार ...

तुम्हें कोई और देखे, तो जलता है दिल
बड़ी मुश्किलों से फिर, सम्भलता है दिल
क्या क्या जतन करतें हैं, तुम्हें क्या पता
ये दिल बेक़रार कितना, ये हम नहीं जानते
मगर जी नहीं सकते तुम्हारे बिना
हमें तुम से प्यार ...

हमें तुम से प्यार कितना, यह हम नहीं जानते
मगर जी नहीं सकते तुम्हारे बिना
हमें तुम से प्यार कितना ...

मैं तो सदा की तुम्हरी दीवानी
भूल गये सैंयाँ प्रीत पुरानी
कदर ना जानी, कदर न जानी
हमें तुम से प्यार कितना ...

कोई जो डारे तुमपे नयनवा
देखा ना जाये मोसे सजनवा
जले मोरा मनवा, जले मोरा मनवा
हमें तुम से प्यार कितना ...