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लूटे कोई मन का नगर बन के मेरा साथी / मजरूह सुल्तानपुरी

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ल: लूटे कोई मन का नगर बन के मेरा साथी \- (२)
म: कौन है वो, अपनों में कभी, ऐसा कहीं होता है,
ये तो बड़ा धोखा है
ल: लूटे कोई ...

ल: (यहीं पे कहीं है, मेरे मन का चोर
म: नज़र पड़े तो बइयाँ दूँ मरोड़ ) \- (२)
ल: जाने दो, जैसे तुम प्यारे हो,
वो भी मुझे प्यारा है, जीने का सहारा है
म: देखो जी तुम्हारी यही बतियाँ मुझको हैं तड़पातीं
ल: लूटे कोई ...

म: (रोग मेरे जी का, मेरे दिल का चैन
ल: साँवला सा मुखड़ा, उसपे कारे नैन ) \- (२)
म: ऐसे को, रोके अब कौन भला,
दिल से जो प्यारी है, सजनी हमारी है
ल: का करूँ मैं बिन उसके रह भी नहीं पाती
ल,म: लूटे कोई ..