Last modified on 27 फ़रवरी 2008, at 00:48

वे दोनों / कुमार विकल

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:48, 27 फ़रवरी 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

(एक परिचित प्रेमी युगल के प्रति)


अच्छा हुआ

वे दोनों

मेरे जीवन से ऎसे निकल गए

जैसे दो प्रेमी

पुस्तक-मेले में आएँ

और बिना कोई क़िताब ख़रीदे

केवल सूची-पत्र इकट्ठे करके ले जाएँ ।

लेकिन मेरा यह डर है

इसी तरह वे

एक-दूसरे के जीवन से चले जाएंगें

बिना एक-दूसरे की क़िताब को पढ़े हुए


क्योंकि उनके लिए

अभी तक जीवन

मात्र एक जिस्मों का मेला है

अक्षरों

शब्दों, वाक्यों

पुस्तकों का नहीं

जिनमें लोगों के दुख-सुख रहते हैं

मनुष्य के मन की प्रेमकथा कहते हैं ।