Last modified on 28 नवम्बर 2011, at 10:42

संगत / नंदकिशोर आचार्य

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:42, 28 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=केवल एक प...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

धूप की संगत में
लय रचता अपने सूख
               जाने की
हवा की संगत में
झर जाने की अपने

रच जाय लय तो
नन्द हो जाती है मृत्यु भी :
लय हैं मेरी नींद में इस लिए
लय हो पाने के सपने ।

17 अप्रैल, 2009