क्याक रे वह
जो कभी लू है
कभी बर्फ़ानी
आँध कभी
शीतल कभी समीर—
हवा का कुछ नहीं
अपना
मौसम हो कर वह
जैसे छूटी है मुझ को
मुझ में हो कर
क्यों कभी
मौसम नहीं होती वह ?
—
4 जून, 2009
क्याक रे वह
जो कभी लू है
कभी बर्फ़ानी
आँध कभी
शीतल कभी समीर—
हवा का कुछ नहीं
अपना
मौसम हो कर वह
जैसे छूटी है मुझ को
मुझ में हो कर
क्यों कभी
मौसम नहीं होती वह ?
—
4 जून, 2009