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क्यों कभी / नंदकिशोर आचार्य

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क्याक रे वह
जो कभी लू है
कभी बर्फ़ानी
आँध कभी
शीतल कभी समीर—
हवा का कुछ नहीं
               अपना

मौसम हो कर वह
जैसे छूटी है मुझ को
मुझ में हो कर
       क्यों कभी
मौसम नहीं होती वह ?

4 जून, 2009