मज़बूत घोड़ों की तरह
दौड़ रही हैं
जड़ें
और
सबेरा है
हर तरफ़
गोया घने जंगलों का बिम्ब
उभर आया हो
आकाश में ।
(रचनाकाल :22 मार्च 1980)
मज़बूत घोड़ों की तरह
दौड़ रही हैं
जड़ें
और
सबेरा है
हर तरफ़
गोया घने जंगलों का बिम्ब
उभर आया हो
आकाश में ।
(रचनाकाल :22 मार्च 1980)