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गौरी / अर्जुनदेव चारण

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गौरी को
कभी घर नहीं मिलता मां
मिलता है मन्दिर
या समन्दर
इस सपने को
मत बसाओ
आंखों में।

अनुवाद:- कुन्दन माली