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रातरानी / नंदकिशोर आचार्य

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दर्द यह जो
रातरानी का महकता है
सुबह झर कर सूख जाएगा
सूरज की तपिश में
             चुपचाप

अब कैसे हो शीतल
ईर्ष्या की आग
          सूरज की

रात जिस तरह
           महकती है
दिन के भाग्य में
           वह कहाँ ?

15 जून 2010