Last modified on 5 दिसम्बर 2011, at 13:19

परछाईं-सा / नंदकिशोर आचार्य

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:19, 5 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=केवल एक प...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अँधेरे में
परछाईं नहीं होती है
—नहीं होता
उजाला अँधेरे में

उजाले में परछाईं-सा
अँधेरा होता है
               लेकिन
बढ़ते-बढ़ते जिस में
                   ख़ुद
लय हो रहता है वह ।

13 जुलाई 2009