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खिलाता हुआ / नंदकिशोर आचार्य

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सीमा है प्रकाश की
—अँधकार की कोई सीमा नहीं—
जहाँ से लौट आने को
विवश है वह
बाहर जिस के अनन्त है
                      अँधकार
खिलाता हुआ
अपनी मृत्यु अपने अंक में
पर अमर

ईश्वर अँधकार है क्या
निराकार, निस्सीम
प्रकाश है जिस का यह
                     दुनिया ?

7 अगस्त 2009