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बेकल-2 / नंदकिशोर आचार्य

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कितने मन्वन्तरों से गुज़र कर
हवा यह
आती है छूने मुझे

कितने मन्वन्तरों का प्रकाश
खोज में रहता है मेरी
करने उजागर मुझ को

अँधेरा कितने मन्वन्तरों का
सुला लेना चाहता है
मुझे अपने में

कितने मन्वन्तरों से
                 भटकती
ले कर मुझे पृथ्वी
अपनी गोद में

कितने मन्वन्तरों से
प्रतीक्षारत है सूना आकाश
मेरे लिए

सभी हैं बेकल

कितने मन्वन्तरों से
मैं भी हूँ बेकल
किसी के लिए

बेकल होना ही काल होना है
—काल यह बेकल है
          किस के लिए ?

20 मार्च 2010