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महाकवि तुलसीदास / जयशंकर प्रसाद

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कानन-कुसुम -


अखिल विश्व में रमा हुआ है राम हमारा

सकल चराचर जिसका क्रीड़ापूर्ण पसारा

इस शुभ सत्ता को जिसमे अनुभूत किया था

मानवता को सदय राम का रूप दिया था

नाम-निरूपण किया रत्न से मूल्य निकाला

अन्धकार-भव-बीच नाम-मणि-दीपक बाला

दीन रहा, पर चिन्तामणि वितरण करता था

भक्ति-सुधा से जो सन्ताप हरण करता था

प्रभु का निर्भय-सेवक था, स्वामी था अपना

जाग चुका था, जग था जिसके आगे सपना

प्रबल-प्रचारक था जो उस प्रभु की प्रभुता का

अनुभव था सम्पूर्ण जिसे उसकी विभुता का

राम छोड़कर और की, जिसने कभी न आस की

'राम-चरित-मानस'-कमल जय हो तुलसीदास की