जीवन है आशा और मरण निराशा
यह आशा की जगत में विचित्र परिभाषा है।
आशा-वश भक्ति भाव ध्यान जप योग व्रत
आशा-वश जग की समस्त अभिलाषा है॥
आशा-वश घोर अपमान सहके भी नर
बोलता विहँस के सुधा सी मृदु भाषा है।
आशा-वश जो हैं वे हैं जग के तमाशा
आशा जिनको नहीं है उन्हें जग ही तमाशा है॥