Last modified on 8 दिसम्बर 2011, at 15:39

विरहिणी / रामनरेश त्रिपाठी

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:39, 8 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामनरेश त्रिपाठी |संग्रह=मानसी / र...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बह री बयार प्राणनाथ को परस कर,
लग के हिए से कर विरह-दवागि बंद।
जाओ बरसाओ घन मेरी आँसुओं के बूँद
आँगने में प्रीतम के मेरी हो तपन मंद॥
मेरे प्राणप्यारे परदेश को पधारे, सुख
सारे हुए न्यारे पड़े प्राण पै दुखों के फंद।
जा री दीठ मिल प्राणनाथ की नजर से तू,
उदित हुआ है देख दूज को सुखद चंद॥