बुद्धि पगड़ी सी बड़ी टीबो सा अनंत धन,
कोमलता भूमि सी स्वभाव बीच भरिए।
देशी कारबार में चिपकिए भरूँट ऐसा,
ऊँट ऐसी हिम्मत सहन-शक्ति धरिए॥
दम्पति में प्रीति-रीति रखिए कबूतर सी,
मोर की सी छवि निज कीरति की करिए।
मारवाड़ी भाइयों! मतीरे के समान आप
ताप परिताप निज भारत का हरिए॥