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प्रेम-ज्योति / रामनरेश त्रिपाठी

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रत्नों से सागर तारों से
भरा हुआ नभ सारा है।
प्रेम, अहा! अति मधुर प्रम का
मंदिर हृदय हमारा है।
सागर और स्वर्ग से बढ़कर
मूल्यवान है हृदय-विकास।
मणि-तारों से सौगुन होगा
प्रेम-ज्योति से तम का नाश॥