Last modified on 9 दिसम्बर 2011, at 13:10

चले चलो / रामनरेश त्रिपाठी

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:10, 9 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामनरेश त्रिपाठी |संग्रह=मानसी / र...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

(१)
आए और चले गए, कितने शिशिर वसंत।
राही! तेरी राह का, कहीं न आया अंत॥
कहीं न आया अंत, तुझे तो चलना ही है।
जीवन की यह आग, जलाकर जलना ही है॥
दम है साथी एक, यही नित आए जाए।
तू मत हिम्मत हार, समय कैसा भी आए॥
(२)
अपने दम को छोड़कर, कर न और की आस।
इस जीवन का एक ही, है रहस्य यह खास॥
है रहस्य यह खास, किसी से कभी न कहना।
धीरज रख चुपचाप, लक्ष्य पर चलते रहना॥
अपने में रह मस्त, देख मत जग के सपने।
वर्तमान में सदा, जागते रहना अपने॥