बार बार उचक उचक लहरों में सिंधु
देखता किसे है बड़ी गहरी लगन से।
जाता है सवेरे प्रति दिवस कहाँ समीर,
राज-कर लेकर सुरभि का सुमन से?
कौन है? कहाँ है? वह जिसकी उतारते हैं
रवि शशि तारागण आरती गगन से?
दीप पाके बुद्धि का अँधेरे पथ में मनुष्य
पूछता नहीं क्यों एक बार निज मन से?