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पुस्तक / रामनरेश त्रिपाठी

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कोई मुझको भूमंडल का एक छत्र राजा कर दे।
उत्तम भोजन, वस्त्र, बाग, वाहन, सेवक, सुंदर घर दे॥
पर मैं पुस्तक बिना न इनको किसी भाँति स्वीकार करूँ।
पुस्तक पढ़ते हुए कुटी में निराहार ही क्यों न मरूँ॥
पुस्तक द्वारा नीति-निपुण विद्वानों से बतलाता हूँ।
सत्पुरुषों के दिव्य गुणों से अपना हृदय सजाता हूँ॥
अगम अगाध समुद्रों को भी बिना परिश्रम तरता हूँ।
बिना खर्च के रण में वन में निर्भय नित्य विचरता हूँ॥
ऐसा श्रेष्ठ मित्र पुस्तक है मैं इससे सुख पाता हूँ।
मैं सारा अवकाश का समय इसके साथ बिताता हूँ॥
कुढ़ता नहीं, न कटु कहता है, सदा सुशिक्षा देता है।
नहीं छुपाता जो पूछूँ और नहीं कुछ लेता है॥
हँसता नहीं अबोध जानकर कभी नहीं यह सोता है।
यदि इसका अपराध करूँ कुछ तो भी रुष्ट न होता है॥
इस सुख को मैं छोड़ भला क्यों और सखों पर ललचाउँ।
ईश्वर से भी यही विनय है पढ़ने को पुस्तक पाऊँ॥