दिल, हज़ार दास्तां।
बिना क़िस्से, बिना कल्पना के।
बिना छाया के मूंजदार फंदों से बना लगता मादरजात। एक बारहबानी बिजूका या नमक का पुतला। गूंगी ऊब सना , उत्सउचाट। घट गये में से छूट निकला। न जाने कैसे एक भगोड़ा या भेदभोपा। भाषा द्वारा परित्यक्त , सान्तगोपन। जलता तिल तिल , सड़ता तिल तिल का अमल-अक्स एक दिड्मूढ़ दानिश्ता। हाल हलक में रखे , चाल चुल्लू में। हज़ार हंटरों की मार से हौसलाहारा। हलफ़हर्फ़ क्या उठाता जब निशान सारे उपसे रहे मार के। हक़ीम हार !
हा हन्त, हे हरि।
जब तलक वह अपने सारे दांतदार नक्शों की कुर्की कर पाता तब तक उसे बुरी बलाओं से बचाना छोड़ दिया गया होता। वह उनके हवाले होता। रोज़ाना से सराबोर लिहाज़ का लफंगा बने या उचित का उचक्का या भलाई का भीषण या कतई का कसाई या दोबारा का दुभाषिया या पुल का दल्लादूत। अलभ्यलोभी या फोकीफरोश।
फलितआपा गोया। झक्की मति का करमजला बने।
गधे पर सींग जैसे।
असंख्य बाल रहते उसके शरीर में–अन्दर के लौंदों तक में उग आते। न जाने जीव से। चीख़ताता वह मुझे बख़्शो। जाग जाना चाहता। काग़ज़ों में।
चुप होता।
यह बिन पते का ऐबदार शख़्स।
सारे अमूर्तन ऐसे फेंकता लगता मानो कभी पितरों के पास जाकर आग फेंकेगा। अपने इकलौतेपन से चेताया इतना वेध्य कि किसी को छुरा तक उठाने की ज़हमत नहीं।
मासूम सीरत सबसे छली जाती।
हमेशा वह राह भूले जिस पर उसे चलना होता , उसकी नियति के रूप। अपने यतीम यकीन को चकलाघरी तरतीब देते। दुनियावीदीठ दोगली लगती , हर बिरादरी बौनी। सबके अंग के रंग घात के घाव सरीखे लगते , कसैले कौए के पंख से काले काज। हलहुजूर के हलकों में हाजिरी लगाते जान लेते कि हर ओर हंगामा हाज़िर का है। ढोंगी ढंग से ढिंढोरा पीटते। कटीली काट वाली कपटी कलम के काईंये। चोपाये चिलम पीते चौपाली। पीड़ाप्रसूत बांझ मज्झिम में गुडुप् गुडुप उसे दोमुंहा सांप बना देते। दोनों ओर सच्ची रीढ। पीठ और सीने दोनों को सोखती। अमूर्ताकार। प्रयासपाली में जन्मते प्रवत्तिपूत , निवृत्तिपूत। रस्साकशी करते जुड़वां। एक दूसरे के व्यक्त अव्यक्त। बहुल बढ़त लेते। द्वार से दोतरफ़ा। मानो वही पाते हुए जो उन्हें पाना है। तत्वमय सत्कारों के संस्पर्श से वंचित।
सचेत सहारा बना रहता, किसी नामकरण का संपोला साया नहीं।
निरंग दिनान्त निर्णीत होता। निदाघ नितम्बों-सा जिन्हें वह लिख नहीं पाता। उसकी ऊंगलियों में दीमकों ने घर कर लिया होता।
आत्मा को शीर्षक देने।
सम्बन्धों के पर्याय असंख्य होते और चूल्हा ज़हर उगलती जबान-सा जलता रहता।
यह मादरजात से गोचर बांचने के बज़र्ख़ तरीक़े होते।