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मत पूछना / रघुवीर सहाय

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मत पूछना हर बार मिलने पर कि "कैसे हैं"
सुनो, क्या सुन नहीं पड़ता तुम्हें संवाद मेरे क्षेम का,
लो, मैं समझता था कि तुम भी कष्ट में होंगी
तुम्हें भी ज्ञात होगा दर्द अपने इस अधूरे प्रेम का ।