Last modified on 19 दिसम्बर 2011, at 15:28

लन्दन डायरी-5 / नीलाभ

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:28, 19 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीलाभ |संग्रह=चीज़ें उपस्थित हैं / ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रफ़्ता-रफ़्ता उतरती है शाम
उतरता है शहर पर एक जाल
हर चीज़ को कसता हुआ
अपनी अदृश्य गिरफ़्त में

जाल के पार दिखती है रोशनियाँ
इस्पात और कंकरीट के इस जंगल में
साथ की खोज में भटकते हुए
मैं आवाज़ दूँ तो
क्या कोई जवाब आएगा ?