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लन्दन डायरी-6 / नीलाभ

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एक अजीब-सी नाउम्मीदी में
गुज़रते हैं दिन
इसी तरह गुज़रती है ट्यूब11
एक के बाद एक
स्टेशनों को छोड़ती हुई
दाखिल होती है सुरंग में

शाम के वक्त
घिरता है
पराजय का एहसास
ट्यूब की खिड़की से देखे गये कुछ चेहरे
गाड़ी का पीछा करते,
पीले पत्तों की तरह
अगले स्टेशन तक
पीछा करते हैं