Last modified on 22 दिसम्बर 2011, at 11:46

महामृत्यु / जगन्नाथप्रसाद 'मिलिंद'

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:46, 22 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगन्नाथप्रसाद 'मिलिंद' |संग्रह=जीव...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

निशि-सुंदरी करेगी नभ में
मंद-मंद जब मादक नर्तन,
सत्वर मंथर चरण-ताल पर
टूट पडूँगा मैं तारा बन।
किरणों के चुंबन को बढ़ते-
बढ़ते राका-शशि की ओर,
महासिंधु में सो जाऊँगा
बनकर आकुल एक हिलोर।
जब जीवन के महागान की
मधुर तान टूटेगी क्षण-भर,
शून्य गगन में मिल जाऊँगा
शीघ्र प्रलय की ‘लय’ में मिलकर।
हाथ उठा सर की लहरों से
मृत्यु करेगी जब आह्वान,
लघु जलकण बन शतदल-जग से
ढलक पडूँगा मैं अनजान।