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बिल्लियॉ / अशोक कुमार शुक्ला

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बिल्लियॉ

खूबसूरत पंखों वाली नन्हीं चिडियों को

एक पिंजरें में कैद कर लिया था हमने ,

क्योंकि उनके सजीले पंख लुभाते थे हमको,

इस पिंजरे में हर रोज दिये जाते थे

वह सभी संसाधन

जो हमारी नजर में

जीवन के लिये जरूरी हैं,

लेकिन कल रात बिल्ली के झपटटे ने

नोच दिये हैं चिडियों के पंख

सहमी और गुमसुम हैं

आज सारी चिडिया

और दुबककर बैठी हैं पिजरें के कोने में
,
पहले कई बार उडान के लिये मचलते

"चिड़ियों के पंख आज बिखरे हैं फर्श पर

और गुमसुम चिड़ियों को देखकर सोचता हूँ

मैं कि आखिर इस पिंजरे के अन्दर

कितना उडा जा सकता है

आखिर क्यों नहीं सहा जाता

अपने पिंजरे में रहकर भी

खुश रहने वाली

चिड़ियों का चहचहाना