आज ख्वाब लिख रही हूँ मैं...... !!!
तन्हा बैठी आज कुछ लिखने जा रही हूँ... खुली आखों से कुछ सपने बुनने जा रही हूँ..... सालो पहले कुछ सवाल किये थे खुद से, उन सवालो के जवाब लिख रही हूँ मैं.... आज ख्वाब लिख रही हूँ मैं......
जीवन की आपाधापी से दूर दिन वो बचपन के, जब आखों में सिर्फ ख्वाब हुआ करते थे एक जादू की नगरी थी,परियो की बाते थी, सच्ची न होकर भी वो बाते सच्ची लगती थी.... दिल में छिपे हैं कही अभी भी, वो एहसास लिख रही हूँ मैं..... आज ख्वाब लिख रही हूँ मैं......
भला लगता था पूरी दुनिया को भूल,
खुद में खोये रहना..
उस छोटे से घर को ही सारा संसार समझना...
उन पलो,उन लम्हों में जिन्दगी है गुजरी,
कुछ खास लिख रही हूँ मैं.....
आज ख्वाब लिख रही हूँ मैं.............